शनिवार, 17 मार्च 2012

अपने बेटे के लिए चंद सतरें -- १

उस दिन मैं आकुल था
बेहद व्याकुल था,
तुम आने वाले थे
और मैं था प्रतीक्षारत |

तुम आये आखिरकार
कुछ यों चूसते अपना अंगूठा
जैसे सारे जहां का
मधुमय उत्स
उसी में छुपा हो |

तुम आये तो सोचा
लो अब बीत गयी प्रतीक्षा ,
नहीं मालूम था मुझे
यह तो महज़ शुरुआत है ,
दरअसल
हर बाप की किस्मत
एक अनंत इंतज़ार है |



3 टिप्‍पणियां:

  1. एक प्रतीक्षारत पिता की मार्मिक अभिव्यक्ति......बहुत सुंदर लिखा है आपने....

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  2. बहुत खूबसूरत...............

    गहन भाव..............

    सादर.
    अनु

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  3. हर बाप की किस्मत

    एक अनंत इंतज़ार है |..कितना सच कहा है...बड़ी अच्छी और सच्ची कविता

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