रविवार, 26 सितंबर 2010

अपने ब्लॉग के बारे में

क्या कहूँ अपने बारे में। एक ज़माना गुज़र गया कविता लिखते हुए। कुछ व्यंग्य और कहानियाँ भी लिखीं। जब पढ़ता था तो नाम और दाम दोनों का शौक था। उस समय लहर, वातायन, कल्पना, धर्मयुग, साप्ताहिक हिंदुस्तान, ज्ञानोदय अदि सभी प्रमुख-अप्रमुख पत्र -पत्रिकाओं में पहले वसंत और बाद में वसंत वसु के नाम से छपा भी| बाद में धीरे -धीरे प्रकाशन से मोहभंग होने लगा या यों कह लें कि रूचि नहीं रही। लिखना विवशता बन गया इसलिए लिखता हूँ | अभी कुछ अरसा पहले, बहुत दिनों बाद , "अक्सर" में आदरणीय हेतु भारद्वाज जी और मित्र गोविन्द माथुर ने "चिंदी-चिंदी कविता" नाम से एक रचना छापी थी। वसु से मुझे कालांतर में कुछ रूमानी सा बोध अधिक हुआ इसलिए इसे छोड़ कर बसंत जैतली के अपने नाम से लिखने लगा। जब जयपुर से दैनिक भास्कर शाया हुआ तो करीब सात माह तक उसमे जीवन -दर्शन लिखा लेकिन उन लोगों से निभा नहीं सका। १९७० से २००५ तक राजस्थान विश्व विद्यालय के संस्कृत विभाग में अध्यापन। यहीं के नाट्य विभाग से उसकी स्थापना के काल से ही जुडा रहा था इसलिए सेवा निवृत्त होने के बाद से वहीँ पढ़ा रहा हूँ। अब वसंत या वसंत वसु को कुछ पुराने दोस्तों के अलावा कोई नहीं जानता इसलिए प्रकाशन के लिए कुछ कहीं भेजता नहीं| कविताओं के दो संकलनो से अधिक सामग्री हो गयी है| प्रकाशक तलाश रहा हूँ पर जब नाम ही खो गया तो छापेगा कौन ? हो सकता है की ये कवितायेँ
मेरे साथ ही स्वाहा हो जाएँ । यहाँ ब्लॉग इसीलिए शुरू किया की कम से कम कुछ कविताओं से, रूचि रखने वाले, लोग परिचित हो लें । बस इतना ही ।

शुक्रवार, 24 सितंबर 2010

संवाद

कल एक फ़ोन किया
वहाँ
जहाँ जाना चाहते हैं सभी,
वहीं रहता है मेरा बेटा |

"हलो पापा"
सुनते ही कहा
आज बनाया था
तुम्हारी पसंद का खाना,
अच्छा बना था
इसलिए याद आई बहुत |

"अपनी -अपनी किस्मत है पापा "
उसने कहा
"मेरी किस्मत में नहीं है
आपके हाथ का खाना |"

मैं चुप रहा
कैसे कहता उससे
कि क्या कुछ नहीं है
मेरी किस्मत में .

शनिवार, 18 सितंबर 2010

विसर्जन

जब मेरे चरों ओर
एक शून्य घिर आता है
मैं उसके कई टुकड़े तोड़
आस- पास खड़े
लोगों पर फ़ेंक देता हूँ
ताकि वह जानें
कि आसमान क्या है
और कितना रह जाता है
नोच लिया जाने पर ...... फैलाव .

सोमवार, 13 सितंबर 2010

सूर्यास्त

बीत गया दिन,
खिड़की के शीशे में
आयत सी उतर रही शाम|

यादों के झुरमुट में
अभी - अभी डूबेगी
बिसराई बातों सी
धुंधलाती शाम |