गुरुवार, 19 सितंबर 2013

अपने बेटे के लिए चंद सतरें --- २



कभी - कभी अचानक 
सुनता हूँ तुम्हारी आवाज़,
कभी दीखते भी हो तुम
हँसते - हँसाते
पढते - गपियाते,
अपनी विशेष मुद्रा में 
गंभीरता से 
कुछ समझाते | 

उस समय होते हो तुम दूर 
पर फिर भी बहुत पास |

ऐसे में 
जब ढक लेता है मुझे 
यादों का कोई बादल,
मै छाँट कर पहनता हूँ 
तुम्हारा कोई पुराना कपडा
और खुद से बतियाता 
निकल जाता हूँ 
अपने आप से भी दूर 
बहुत - बहुत दूर |


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