रात के सन्नाटे का खून करती
एक आवाज़
बहुत दूर से आती है,
सपनो के मानसर में तैरती
मेरी हंसपंखी यादों को
निगल जाती है ।
प्यार की परछाइयां
मंडराती हैं,
खिड़की के परदे
थरथरा कर
थम जाते हैं,
अस्तित्व के दावेदार
कई विचार
छटपटा कर
दम तोड़ देते हैं,
मैं सोचता हूँ
आखिर यह मनहूस
मर क्यों नहीं जाती ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें